(नईदिल्ली)सुप्रीम कोर्ट ने साइबर अपराधियों पर तमिलनाडु की निवारक हिरासत को बताया उचित

Jun 24, 2025 - 19:15
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(नईदिल्ली)सुप्रीम कोर्ट ने साइबर अपराधियों पर तमिलनाडु की निवारक हिरासत को बताया उचित

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में साइबर अपराधियों के खिलाफ निवारक हिरासत कानून के तहत कार्रवाई करने के लिए तमिलनाडु सरकार की प्रशंसा की है. यह मामला सोमवार को जस्टिस संदीप मेहता और जॉयमाला बागची की पीठ के समक्ष आया. पीठ ने टिप्पणी की, यह एक अच्छा रुझान है कि साइबर अपराधियों के खिलाफ निवारक हिरासत कानूनों का उपयोग किया जा रहा है.
पीठ ने कहा कि यह एक बहुत ही स्वागत योग्य दृष्टिकोण है. कहा, कि सामान्य आपराधिक कानून साइबर अपराधियों को रोकने में सफल नहीं हो रहे हैं. सुनवाई के दौरान, राज्य सरकार का प्रतिनिधित्व करने वाले वकील ने पीठ के समक्ष तर्क दिया कि एक जवाबी हलफनामा दाखिल किया गया है. पीठ ने रजिस्ट्री को इसे रिकॉर्ड में लाने का निर्देश दिया और मामले की अगली सुनवाई बुधवार के लिए निर्धारित की.
पीठ एक याचिकाकर्ता की याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जो एक हिरासत में लिए गए व्यक्ति के पिता हैं. हिरासत में लिया गया व्यक्ति एक साइबर अपराध गिरोह का सदस्य माना जाता है. याचिकाकर्ता ने हिरासत आदेश के खिलाफ याचिका दायर की थी. याचिकाकर्ता ने मद्रास उच्च न्यायालय द्वारा बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका खारिज किए जाने के बाद सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था.
उच्च न्यायालय ने इस दलील को स्वीकार करने से इनकार कर दिया था कि हिरासत आदेश ने भारतीय संविधान के अनुच्छेद 22(5) और निवारक हिरासत कानून के तहत निर्धारित प्रक्रियाओं का उल्लंघन किया है.
याचिकाकर्ता के बेटे को तमिलनाडु साइबर पुलिस ने एक साइबर अपराध पीडि़त की शिकायत के बाद गिरफ्तार किया था. आरोप लगाया गया था कि पीडि़त से 84 लाख 50 हजार रुपये की ठगी की गई थी. अपराध की राशि का एक हिस्सा उनके द्वारा बनाए गए एक कंपनी के चालू खाते में गया था. आरोप है कि आरोपी ने अपने और अपने परिवार के सदस्यों के नाम पर चार कंपनियां बनाई थीं और ठगी की गई राशि को हड़पने के लिए कई बैंक खाते खोले थे.
जिला कलेक्टर द्वारा अगस्त, 2024 में याचिकाकर्ता के बेटे के खिलाफ निवारक निरोध आदेश जारी किया गया था और सलाहकार बोर्ड ने 25 सितंबर, 2024 को निरोध की पुष्टि की थी. सरकार ने 9 नवंबर, 2024 के आदेश द्वारा 12 महीने की अवधि के लिए निरोध की पुष्टि की.
यह तर्क दिया गया है कि बंदी, जो पंजाब से है और उसकी मातृभाषा पंजाबी है, को तमिल, हिंदी और अंग्रेजी में दस्तावेज दिए गए. जिससे उसे निवारक नजरबंदी के आदेश के खिलाफ अभ्यावेदन देने का उचित अवसर नहीं मिला.
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